चलता राही
मेरी जिन्दगी सिर्फ एक सफ़र है
और चला जा रह हूँ
पता नही किस की तलाश मॆं
कुछ खो गया था, उसे पाने की आस मॆं
बारिश का मौसम था,
बहारें खिल रही थी
मेरी जिन्दगी के पतझ्ड मॆं
कलियाँ भी मर राही थी
कुछ पाने की आस मॆं
ना बुझने वाली प्यास मॆं
और चला जा रह हूँ
पता नही किस तलाश मॆं
तुफानो से लड़ता हुआ
आँधियों से झगड्ता हुआ
और चला जा रह हूँ
ना जाने किस आस मॆं
मिलेगी कभी उम्मीद की किरण
ऐसा कहता है मेरा मन
और चला जा रह हूँ
एक मुकम्मल राह मॆं
2 comments:
written nicely on a beautiful subject.
Guess a little more practice will make the forthcoming poems perfect.
thanks for encouragement
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